भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजाला चाहिए / दीनानाथ सुमित्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनानाथ सुमित्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस उजाले में मेरा हिस्सा कहाँ है?
मुझे भी थोड़ा उजाला चाहिए
 
छोड़ना विष-वाण, छोड़ो
सुमन बिखराओ जरा-सा
इस तरह ना रिक्त रक्खो
हृदय दो अपना भरा-सा
प्यास है तो प्यार-प्याला चाहिए
इस उजाले में मेरा हिस्सा कहाँ है?
मुझे भी थोड़ा उजाला चाहिए
 
मरघटों की है उदासी
सुबह रोती, शाम रोती
यातना में तड़पती है
अकेले में रात रोती
मुझे भी जीवन निराला चाहिए
इस उजाले में मेरा हिस्सा कहाँ है?
मुझे भी थोड़ा उजाला चाहिए
 
 
झूठ का सागर सुखा दो
सत्य का गिरिवर उठाओ
सुख भरा संसार दे दो
सुंदरम के गीत गाओ
सत्य-शिव का ही शिवाला चाहिए
इस उजाले में मेरा हिस्सा कहाँ है?
मुझे भी थोड़ा उजाला चाहिए
 
भूख से मरने नहीं दो
पेट का भरना जरूरी
जिन्दगी चलती रहे यह
दर्द का हरना जरूरी
जून दो का ही निवाला चाहिए
इस उजाले में मेरा हिस्सा कहाँ है?
मुझे भी थोड़ा उजाला चाहिए