भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 24 दिसम्बर 2019 का अवतरण
मौज़ है मुफ़लिसी में भी यारो
जैसे जीते हैं खूब जीते हैं
हम नहीं हैं वो जार-जमीं वाले
जो गरीबों के लहू पीते हैं