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आदमी को आदमी से प्यार है / हरि फ़ैज़ाबादी
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आदमी को आदमी से प्यार है
आजकल ये सोचना बेकार है
ज़िंदगी को ये कहाँ से मिल गया
छल-कपट तो मौत का हथियार है
हार जायेगा बेचारा उम्र से
बात बच्चे की भले दमदार है
झोपड़ी हो या महल हो हर जगह
आईने का एक ही किरदार है
मानने को मान लें कुछ भी मगर
कौन मौसम से बड़ा अय्यार है
कै़द है जो मसलहत की बाँह में
उस रफ़ाक़त से मुझे इन्कार है
कह दो ख़ुश्बू से रहे औक़ात में
ख़ार का भी फूल पर अधिकार है