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जब तलक जान पर नहीं आता / हरि फ़ैज़ाबादी
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जब तलक जान पर नहीं आता
ख़तरा-ख़तरा नज़र नहीं आता
जाने क्यों राह में बिना भटके
रास्ते पर सफ़र नहीं आता
आदमी में बग़ैर ख़ुद चाहे
सोहबतों का असर नहीं आता
हार से मत डरो बिना हारे
जीतने का हुनर नहीं आता
ऐसा किस काम का सहारा है
काम जो वक़्त पर नहीं आता
टूट जाओगे सच-वफ़ा में तुम
दर्द सहना अगर नहीं आता
क़द्र हर एक लम्हे की करिये
गुज़रा पल लौटकर नहीं आता