भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिसको सबने अच्छा समझा / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिसको सबने अच्छा समझा
उत्तर था वह सोचा समझा
मुझसे कितनी भूल हुई जो
तोते को बस तोता समझा
क्या कहती हैं बूढ़ी आँखें
घर में केवल पोता समझा
हैरत है अधखिले फूल को
माली ने भी काँटा समझा
भरा अभी कश्कोल नहीं है
रात हुई तब अंधा समझा
कोशिश औरों ने भी की, पर
ग़म बहरे का गूँगा समझा
शायद मैंने ठीक किया जो
दुनिया को बस दुनिया समझा