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तुमको मेरी चाह नहीं / हरि फ़ैज़ाबादी
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तुमको मेरी चाह नहीं
तो क्या कहीं पनाह नहीं
किस पुस्तक में लिक्खा है
मुफ़लिस का अल्लाह नहीं
वक़्त सिखाता सिर्फ़ सबक़
देता कभी सलाह नहीं
उतरे पानी में क्यों जब
गहराई की थाह नहीं
परेशान हो सकता है
सच्चा कभी तबाह नहीं
कुर्सी औरों को दो जब
दे सकते तनख़्वाह नहीं
करना ही है असर उसे
बेजा जाती आह नहीं
भटका शायद मैं ही था
मुश्किल कोई राह नहीं