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ज़ख़्म किसी का हरा मत करें / हरि फ़ैज़ाबादी
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ज़ख़्म किसी का हरा मत करें
रोज़ वही माजरा मत करें
सबसे अमृत की ख़्वाहिश में
जीवन को विषभरा मत करें
बीते कल की हर घटना को
यादों में छरहरा मत करें
घड़ा घुटन से मर जायेगा
पानी मुँह तक भरा मत करें
करके फेरबदल नुक़्ते़ में
पेश तर्क दूसरा मत करें
खरा बोलिये लेकिन अपने
लहजे को तो खरा मत करें
रब से डरिये लेकिन उसके
इम्तहान से डरा मत करें
ख़ुदा एक है रोज़ भरम में
नया-नया आसरा मत करें