भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र के ऑसू / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:12, 28 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: एक दिन मैंने पूछा समुद्र से देखा होगा तूने, बहुत कुछ आर्य, अरब, अंग्रेजों ...)
एक दिन मैंने पूछा समुद्र से देखा होगा तूने, बहुत कुछ आर्य, अरब, अंग्रेजों का उत्थान-पतन सिकन्दर की महानता मौर्यों का शौर्य,रोम का गौरव गए सब मिट, तू रहा शांत अब,इस तरह क्यों घबड़ाने लगा है अमेरिका , रूस के नाम से पसीना क्यों बार-बार आने लगा है मुक्ति सुनी होगी तूने, व्यक्ति की बुद्ध,ईसा,रामकृष्ण सब हुए मुक्त देखो तो आदमी पहुंचा कहां वो ढूंढ चुका है, युक्ति मानवता की मुक्ति का अरे, रे तुम तो घबड़ा गए एक बार, इस धराधाम की भी मुक्ति देख लो अच्छा तुम भी मुक्त हो जाओगे विराट शून्य की सत्ता से एकाकार हो जाओगे लो,तुम भी बच्चों सा रोने लगे मैंने समझा था,केवल आदमी रोता है तुम भी, अपना आपा इस तरह खोने !