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जीवन-मरण काल चक्र / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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क्यों करते मनमानी यारा
हम हैं टूटने वाले इक तारा।
जन्म लिया जब मानव में
तो मरना भी है तन सारा।

बचपन नादानी में बीता
युवावस्था मद में रीता
बुढ़ापा जब सामने आता
अंतर्मन है बहुत घबराता।

किया अहम् जो जीवन में
वो सिर पकड़ है पछताता
मोह जाल में फँसकर बन्दा
छुड़ा सका न जीवन फंदा।

समय चक्र बीतता जाता
पता नहीं कुछ लग पाता।
जीवन रंगमंच है अनमोल
रखना सबसे है मेलजोल।

न कर गर्व तू मूर्ख प्राणी
ढ़ल जाती है ये जवानी।
जैसे सूरज उगता सबेरे
फिर दोपहरी से शाम अंधेरे।

जग में कुछ शाश्वत नहीं
जीवन-मरण है सत्य यही।
काल चक्र का चलता रहता
ज्ञानयुक्त ग्रन्थ गीता कहती।

तन नाश मृत्यु है करती
आत्मा अजर अमर होती।
नेक कर्म कर जाना ज्ञानी
यही रहेगी जग में निशानी।