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अइलय ह जाड़ा बहोर / सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण'
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घूकड़ल गरीब हे, फटल नसीब हे
धन के विलासी विभोर हो भइया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
केतना हूँ झाँपे दलदल काँपे
ठिठुरल जवानी के ठोर
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
संझौआ बेला, लड़इकन के मेला
लहकवाय खेरहवा बटोर
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
बुढियन के खाँसी चलब हे काशी
रग-रग मेँ बाता अथोर
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
रुई या दुई, जाड़ा के छुई
ननदी भौजइया मेँ होड
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
सब कुछ सोरा, मांगय इंगोरा
मन-मन के दे हय झिकोर
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।
केकरो न आशा, दुख के कुहासा
टप-टप टपकय ह लोर
हो भैया
अइलय ह जाड़ा बहोर ।