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घिर रहल बरसात / सुरेन्द्र प्रसाद 'तरुण'

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आझ अइतय चान कैसे
घिर रहल बरसात
घिर रहल बरसात नभ मे
घिर रहल बरसात
पल रहल अरमान जे हल
देख उ बेचैन
फूल कज्जल दे रहल हे
प्यार के दू नैन
कौन जाने हूक के मन के
आउ विरह के बात
घिर रहल बरसात ।
सांस मुट्ठी मे जकड़ के
चल रहल अनजान
रास्ता बीहड़ कठिन हे
कुछ न एकर भान
डेंघूरी जीमन मरन के
सह रहल आघात
घिर रहल बरसात ।
ई हकय बरसात ऊजे
छल गलावे प्राण
एकला विरही हिया मेँ
कह भुलावे गान
दर्द उठल ज़ोर तन मेँ
भर पिया भरगात
घिर रहल बरसात ।
चान आकुल आउ वियाकुल
प्यार मे उ पार
चाननी बिना तो
खो रहल सिंगार
कौन गोवाही रहत रे
अब प्रणय के रात
घिर रहल बरसात ।