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अब नाही कंगना के पास / आर० इशरी 'अरशद'

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अबकी बरस बाबा हमरो बियाहू
अब नाही कंगना के आस
पहिला बइमनमा
रितु के चरनमा
रखें नाही खेतबा के लाज।
खेत खलिहान सुखल
पइनियो के मांग सुखल
बाजे नाहीं बजरा के बाज।
अबकी बरस बाबा हमरो बिआहू
अब नाही कंगना के आस
दूसरे बइमनमा
गांव सहुकरवा
सुदबा पे सुद दे लगाइ
मूरबा के मूर रहल
फ़ोकटे बेगारी लिहल
चउरा के मूर दे बढ़ाय।
अबकी बरस बाबा हमरो बिआहू
अब नाही कंगना के आस।
तीसरे बइमनमा
हिया के जलनमा
धधकत अंग शरीर
राधा नाही नौ पावइ
राधा नाही मन नाचइ
झर-झर बहतऽ नीर
अबकी बरस बाबा हमरो बिआहू
अब नाही कंगना के आस।
चौथे बइमनमा
इहे सब कारनमा
रीत अनाज लुटइ
सूद समाज लुटइ
रहलूँ बदहाल गोपाल
भूख उल्लास लुटइ
सूद समाज लुटइ
फइलल लोगन के जाल।
अबकी बरस बाबा हमरो बिआहू
अब नाही कंगना के आस।
पचमे बइमनमा
हमरो इ मनमा
अटकल पियबा ओर।
आदर्शी कगनमा
मोहतइ पिया मनमा
जेहि लेतहि ससुआ मोर
अबकी बरस बाबा हमरो बिआहू
अब नाही कंगना के आस।