अझका गाँव / मुनेश्वर ‘शमन’
बेहोस पड़ल भूख के, बहियन में गाँव हे।
प्यासल हे, मगर पानी के, केतना अभाव हे।।
ई चलइत-चलइत आजकल ऊ ठौर आ ठहरल।
सिर पर हे सिरफ धूप, दूर तक नञ छाँव हे।।
सनकल बेआर बाँटे हे, बारूद धरे-घर।
अब गाँव तो लगऽ हइ कि सुलगत अलाव हे।।
टोला मेओ बँटल देह टुकड़ा-टुकड़ा में जिनगी।
सहरी सउर के देने जादे झुकाव हे।।
कुछ बह गेलन फरेब में कुछ झूठ में डूबलन ।
चारो तरफ कुरीतिये के नित बहाव हे।।
चौपाल भेल चुप सब्हे सहमल हे बगइचा।
अनजान कउनो डर के जिया में पड़ाव हे।।
जहिया से भूल गेलय ई अप्पन चलन भइया।
तहिये से एकर आत्मा में लगल घाव हे।
हम खोज रहली रिस्ता के हेराल जे तसवीर।
नञ मिलल ऊ तऽ खोजइत –खोजइत थकल पाँव हे।।
जे कल हलय से ठीक हाल कि अखनी हे से ठीक
अब एहे बात के तो करय के चुनाव हे।।