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बसन्ती भोर / मुनेश्वर ‘शमन’

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पेन्ह के किरिनियाके चुनरी लगनउती।
भोर ई बसन्ती लगय कनिया बिहउती।।

संगेसंग पवनमा के अंगे-अंग नाचय।
चप्पा-चप्पा सुन्नरता अपन साज साजय।
रितु खोल देलक हे झाँपल-तोपल पाँउती।।

 ओठधल दुअरिया पर साँझ रे सियानी।
गदरल जाहइ धीरे-धीरे एकर तो जुआनी।
चाँदनिया सलोनी देवे लगल हे सँझउती।।

भुलल-बिसरल इयाद अचानक जी में जागय।
नेहिया भींजल मनवाँ मनइले से कब मानय।
रोजे-रोजे आसऽ माँगय मेल के मनउती।।