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नन्हीं चींटी / आलोक कुमार मिश्रा
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नन्हीं चींटी ज़रा बताना
मुझको अपना हाल-ठिकाना
कहाँ से आती, कहाँ को जाती
दिन भर ढूँढो क्यों तुम खाना ।
छोटा सा तो पेट तुम्हारा
उस पर खाती हो ढेर सारा
मीठे से क्यों जी नहीं भरता
कैसे हो पाता है पचाना
नन्हीं चींटी जरा बताना ।
इतने घर में लोग तुम्हारे
मिलकर करते काम हो सारे
आलस तुममें तनिक नहीं है
करती क्यों नहीं कोई बहाना
नन्हीं चींटी जरा बताना ।
दादी कहती तुम हो ज्ञानी
अण्डे ढोओ उस दिन यानी
बारिश होगी ख़ूब सुहानी
ये सब तुमने कैसे जाना
नन्हीं चींटी जरा बताना ।