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मीत पुराने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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मीत पुराने
न दिया कभी धोखा
न थे शिकवे
न कोई शिकायत
फिर भी रूठे
भ्रम की थी दीवारें
हम थे सच्चे
कहलाए हैं झूठे
मन पूछता
कई टेढ़े सवाल
कहाँ था खोट
कौन -सी लगी चोट
कि दो पल में
थे बिखरे सम्बन्ध
टूटे थे अनुबन्ध।