भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरहद पर सिंदूर / अंकिता कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 19 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंकिता कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गाड़ी गुजरीं अनगिनत, होता हृदय अधीर।
फोन नहीं पिय का लगे, नैनन बहता नीर।।
गुमसुम बैठी सोचती,लेकर मन में आस।
जाने किस क्षण आ मिलें, मनभावन उर पास।।
पल-पल राह निहारती, प्रियतम घर से दूर।
मातृभूमि हित के लिए, सरहद पर सिंदूर।।
क्या होली-दीपावली, कैसे व्रत त्यौहार।
साजन बिन सूना लगे, घर-आँगन-संसार।।
सुई घड़ी की भागतीं, भागें धड़कन साथ।
ईश्वर तुमसे माँगती, अपने पिय का हाथ।।