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सरहद पर सिंदूर / अंकिता कुलश्रेष्ठ

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गाड़ी गुजरीं अनगिनत, होता हृदय अधीर।
फोन नहीं पिय का लगे, नैनन बहता नीर।।

गुमसुम बैठी सोचती,लेकर मन में आस।
जाने किस क्षण आ मिलें, मनभावन उर पास।।

पल-पल राह निहारती, प्रियतम घर से दूर।
मातृभूमि हित के लिए, सरहद पर सिंदूर।।

क्या होली-दीपावली, कैसे व्रत त्यौहार।
साजन बिन सूना लगे, घर-आँगन-संसार।।

सुई घड़ी की भागतीं, भागें धड़कन साथ।
ईश्वर तुमसे माँगती, अपने पिय का हाथ।।