भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ! तुम्हारी गंध / अनुपम कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:51, 22 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपम कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

माँ! मुझसे आती है अब भी
तुम्हारी गंध कभी-कभी
जिसे मैं ही सूंघ पाता हूँ
मेरी बीवी मेरे बच्चे
इसे समझ नहीं पाते
भाई-बहन शायद जान जाएँ
पिता अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं
माँ! तुम्हारी मधुर हंसी
बरबस मेरे होंठो पे आती है
 तुम्हारे युवाकाल की निर्मल हंसी
सबको मोहनेवाली
पर मेरी हंसी पे कोई लुभाता नहीं
भाई-बहन शायद पहचान लें
पिता जान जाते हैं
तुम्हारी वो हंसी मेरे होंटों पर

माँ! तुम्हारी मधुर आवाज़
तुम्हारा सुरीला गान
कोकिल कंठी तान
मेरे गले से बरबस
प्रस्फुटित कैसे हो जाती है !
मुझे कभी समझ नहीं आया
भाई-बहन चाहें तो सुन सकते हैं
पिता अवश्य जानते हैं
तुम मुझमें गाती हो

माँ! तुम्हारी गंध
तुम्हारी हंसी
तुम्हारी आवाज़
सुरक्षित है मुझमें
जब तक मैं ज़िन्दा हूँ माँ!
जब तक मैं ज़िन्दा हूँ माँ!