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पहन के कोट पैंट / अभिषेक कुमार अम्बर
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पहन के कोट पेंट तन पे लगा के सेंट,
बनकर बाबू सा में चला ससुराल को।
आकर के मेरे पास बोलने लगी ये सास,
नज़र न लग जाये कहीं मेरे लाल को।
बिलकुल हीरो से तुम लगते हो जीजा जी,
बोलने लगी सालियां खींच मेरे गाल को।
आखिर है क्या राज़ बदले इसके मिज़ाज़,
लग गए है बड़े भाग इस कंगाल को।
(घनाक्षरी छंद)