भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बत्तख / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खूब झखाझक गोरी बत्तख,
दिन-भर करती रहती चख-चख।
पीली-पीली चोंच नुकीली,
गर्दन लंबी हैं फुर्तीली।
पंजे जालीदार सजीले,
फड़-फड़ पंख सुखाती गीले।
मछली-वछली छत कर जाती,
तैर-तैर कर मौज मनाती।