भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेट और पेटी / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जग बहादुर पेटु इतना,
खाना खाता हाथी जितना।
तोंद हो गई इतनी मोती,
पड़ी पेटियाँ सारी छोटी।
उड़ती चारों ओर हंसी है,
अब मुश्किल में जान फंसी।
या तो अपना पेट घटाए,
या लंबी पेटी मँगवाए।