भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नन्हा मछुआ / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बंसी डाल नदी में नीलू, बन कर बैठा मछुआ,
मछली फँसी न कोई दिन –भर, फँसा अंत में कछुआ।
नीलू समझा फँसी आज तो बहुत बड़ी मछ्ली है,
इतना ज़ोर लगाने पर ही जो बाहर निकली है।
बाहर निकल मगर कछुए ने जब गरदन मटकाई,
उसने सोचा- बैठे बैठे यह क्या शामत आई।
हाथ मिलाने को कछुए ने हाथ बढ़ाया आगे,
नीलू जी सब फेंक- फाँक कर बड़ी ज़ोर से भागे।