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आना मेरी शोक सभा में / सरोज कुमार

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तुम जरूर आना
मेरी शोक-सभा में,
मेरे शोक के लिए नहीं,
तो अपने
किसी शौक के बतौर!
तुम्हें मजा आएगा
मेरी शोक सभा में,
जैसा मुझे आता रहा है
ऐसे अवसरों पर!

शादी-ब्याह के जलसे और
शोक-सभाएँ अगर न हों
तो लोग तरस जाएँ,
मिलने-जुलने-बतियाने को!

तुम जरूर आना
मेरी शोक- सभा में
तभी मैं
इत्मीनान से मर सकूँगा!
क्या तुम नहीं चाहोगे
कि वह शख्स
इत्मीनान से मर तो सके,
जो इत्मीनान से
जिन्दा रहना चाहता था!
तुम नहीं आए
तो शोक
साकार नहीं हो पाएगा सभा में,
शोक से ज्यादा जरूरी है
शोक-सभा,
शोक तो घर-घर के मना लेंगे
पर सभा असंभव है
तुम्हारे बिना!

एक ही तो बची है अब जगह
जहाँ
इंसान अपने बारे में
इतने सारों के बीच
अपनी तारीफ के
दो शब्द सुन पता है,
मरणोंपरांत ही सही!