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अलंकरण / सरोज कुमार

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डिग्री को
तलवार की तरह घुमाते हुए
वह संग्राम में उतरा
वह काठ की सिद्ध हुई!

डिग्री को
नाव की तरह खेते हुए
वह नदी में उतरा
वह कागज की सिद्ध हुई!

डिग्री को
चेक की तरह संभाले हुए
वह बैंक पहुँचा
वह हास्यास्पद सिद्ध हुई!

डिग्री को काँच में जडवाकर
उसी दीवार पर उसने लटकवा दिया,
जिस पर शेर का मुँह
और हिरण के सींग टंगे थे,
शोभा में, इजाफा करते हुए!