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लड़की को बड़ी मत होने दो / सरोज कुमार

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तुम इधर क्या ऊँघ रहे हो?
उधर लड़की बड़ी होने वाली है-
धीरे-धीरे
पाँव पर खड़ी होने लगी है!
धरती को हिलाओ,
अगर वह सचमुच खड़ी हो जाएगी
तो हमसे भी बड़ी हो जाएगी!

फिर हाथ पसारती
राखियों का क्या होगा?
हमारी सौंपी
बैसाखियों का क्या होगा?

वह पाँव खड़ी हो गई,
तो चलने भी लगेगी
नया- नया देखेगी,
मचलने भी लगेगी!
संविधान देख लेगी,
तो अधिकार मांगेगी
पिता की पास- बुक से
कार मांगेगी!
फिर सनातन पगडंडियों का
क्या होगा?
होनहारों की मंडियों का
क्या होगा?

उसे कंचे, पाँचे और
कौड़ियाँ ही झिलाओं,
सिलाई-बुनाई के
झुंझनों से खिलाओं!

उसे देवरानी, जिठानी की
कहानी ही कहने दो
आँचल में दूध,
पानी आँखों में रहने दो!

चादर को
माथे की पगड़ी मत होने दो,
लड़की है,
लड़की को बड़ी मत होने दो!