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अमरूद / सरोज कुमार
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वह बच्चों को
पाँच साल से पढ़ा रही है
अमरूद से अ...!
वही वही अमरूद और
वही वही अ....
उसके वेतन की तरह!
जहाँ का तहाँ!
किताबों में!
वह ‘अ’ अन्याय का पढ़ाना चाहती है
पर किताब में अमरूद छपा है!
उसे याद आता है,
बहुत दिनों से उसने
अमरूद नहीं खाए!
वैसे अमरूद का स्वाद
कोर्स में नहीं है!
अन्याय का ‘अ’
वह पढ़ाए भी तो कैसे?
अन्याय की शक्ल नहीं होती, और
बच्चे केवल शक्ल समझते हैं!
केवल बच्चे ही शक्ल समझते
तो भी ठीक था
स्कूल का सेक्रेटरी तो बच्चा नहीं है,
पर वह भी बस शक्ल ही समझता है,
नहीं तो उसका वेतन नहीं बढ़ चुका होता
नई टीचर की तरह?