भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्याकरण / अनिल मिश्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 24 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन में व्याकरण की पुस्तक में पढ़ा
कि एक से अधिक वर्णों से बनी
स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द है
तभी से सोचता रहा
अवश्य होती होगी आसपास
कहीं निरर्थक शब्दों की बस्ती
बार बार निकालकर बाहर फेंक दिए गए होंगे
वो सार्थक शब्दों के टोले से
क्या करते?

मैंने व्याकरण के बारे में भी सोचा
फिर उसकी कार्यशाला के बारे में
जहां गढ़ी जाती होंगी ऐसी परिभाषाएं