भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाओ गीत / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
198.190.230.62 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:28, 29 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम कहते, ‘गाओ आज गीत !
है पर्व मिलन का शुभ पुनीत !’

जीवन में सुखमय लहरों का
कंपन बरबस भर देते हो,
और तभी आ चपके-चुपके
उर धन-राशि चुरा लेते हो,
खो जाते भाव उदासी के
:
तुम दुःख भुला देते अतीत !
तुम मधु-पूरित शीतल निर्झर
हो मेरी जीवन-सरिता के,
छा जाते हो प्रतिपल मेरे
प्राणों के स्वर में कविता के,
मूक पराजय की बेला में
मैं जाता तुमको देख जीत !
1949