कैसे तुम बिन / निशा माथुर
कैसे तुम बिन चैन धरूँ पिया, कैसे धङकते मन को समझाऊँ,
छलक रही नैनों की गगरीया, कैसे ये गीत विरह का गाऊँ।
आंगन बुहारू, मांडणा मांडू, अंग-अंग खिलती रंगोली सजाऊँ,
भोर अटरीया बोले कागा, पल-पल द्वारे दौङती क्यूं आऊँ।
कुमकुम भरे कदमों से नाचती शुभकामनाऐं लिख-लिख जाऊँ,
पी रो संदेसो ले आ रे सुवटिया, तेरी चौंच सुनहरी मढवाऊँ।
कैसे तुम बिन चैन धरूँ पिया, कैसे धङकते मन को समझाऊँ!
उमङ घुमङ घन गरजे काले, मैं पात सरीखी कंप-कंप जाऊँ,
कुहूकू कोयलिया बोले मीठी बोली, मैं हूक कलेजे में पाऊँ,
सावन सुरंगा क्यूं करे अठखेली, मैं, कजरा नीर छलकाऊँ।
पिया परदेस, भीगा मोरा तन-मन, का से हिय की पीर बताऊँ।
कैसे तुम बिन चैन धरूँ पिया, कैसे धङकते मन को समझाऊँ!
चंचल हिरणी-सी घर भर में डोलूँ लक्ष्मी केरा हाथ सजाऊँ,
मन-भावन मांडण को निरखती, पिय मिलन की आस बंधाऊँ।
सखी-सहेलियाँ करें अठखेली, कनखियाँ नजर भर मुस्काऊँ,
चंदन लेप, कुन्तल केश, चंचल चितवन, सौलह सिणगार सजाऊँ।
कैसे तुम बिन चैन धरूँ पिया, कैसे धङकते मन को समझाऊँ!
छलक जाय नैनों की गगरीया, कैसे यूं गीत विरह का गाऊँ।