भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भग्यानु कु ज्यू होली हरसौणी / ओम बधानी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:16, 6 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम बधानी }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> भग्यानु कु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भग्यानु कु ज्यू होली हरसौणी
मै रूवायौं सदानी आज भि रूवौणी
य रात जुन्याळी मैक औंसि सि काळी

उद्यौ भि नि ह्वै घाम अंछळ्यै गई
खुलि भि नी रात काळि ह्वै गई
मेरू भाग बातुलि सि सदा फुकेणी ,
मै रूवायौं सदानी आज भि रूवौणी
य रात जुन्याळी मैकु औंसि सि काळी

उदंकार होंदु पर सूरज हरचिगे
बरखा कि आस करि बादळ उड़िगे
पणधारि आंख्यौंन चुंवाई चुवौणी,
मै रूवायौं सदानी आज भि रूवौणी
य रात जुन्याळी मैकु औंसि सि काळी

भाग म अभाग लिखैक ल्यायूं छ
विधाता कु भि द्वी हातुन् दिन्यूं छ
ब्वैन जु ग्यौं, त काटि कौणी ,
मै रूवायौं सदानी आज भि रूवौणी
य रात जुन्याळी मैकु औंसि सि काळी