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ज्ञान का दीप जलाएँ / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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ज्ञान का दीप जलाएँ, आओ किसी को पढ़ाएँ।
विद्या से मिटता है अँधेरा
फिर होता नया सवेरा
एक नए आकाश को पाने,
आओ, सूरज नया उगाएँ। आओ किसी को पढ़ाएँ॥1॥
जाति-धर्म के भेद मिटाती विद्या है,
नर-नारी के भेद मिटाती विद्या है,
सभी समान हैं मान मन्दिर में,
आओ भटके हुओं को बताएँ। आओ किसी को पढ़ाएँ॥2॥
अनपढ़ होना है कलंक यह बतलाना है,
चाहे जितने कटंक आएँ इसको हमें मिटाना है,
मेरे रहते नहीं रहेगा, कोई निरक्षर,
आओ आज शपथ हम खाएँ॥3॥
आओ किसी को पढ़ाएँ
ज्ञान का दीप जलाएँ॥