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आँसू की स्याही से / हरेराम बाजपेयी 'आश'
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पीड़ा के पन्नों पर, आँसू की स्याही से,
सुधियों की कलम चला, मैं गीत बनाता हूँ।
जब अनदेखा सपनोनमे, प्रीत जगा जाए कोई,
जगाने पर मिलता सूनापन, मैं उसे एमआईटी बनाता हूँ।
विरहा की बगिया से अवसादों के फूल चुने,
फिर काँटों का हार, मैं जीत मनाता हूँ।
तन को तरसाया तप करके, मन को मारा उपवासों से,
विश्वास किसी का पाने को, मैं नित रीत बनाता हूँ।
अपनी ही महफिल में गैरों की सुनी तारीफ "आश"
नफरत के टार मिले मुझको, जिनसे संगीत बनाता हूँ॥