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बात अपने देश की / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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रक्त्त की प्यासी धरा है देश की,
क्या कहें हम बात अपने देश की।

पूर्व से पश्चिम तलाक, खून ही बस खून है,
फिर भी प्यासी है धरा, हाय अपने देश की।

स्वर्ग से बढ़कर जहाँ सुख शांति सुन्दरता रही,
नर्क से बदतर हुई हालत उसी कश्मीर की।

गुरु की वाणी से जहाँ बहती थी नदियाँ प्यार की,
वह पवित्तर भूमि अब जानी है जाती कत्ल की।

सभ्यता की झूठी कहानी और कब तक तुम गढ़ोगे,
अलविदा कब कौन कह दे, भूमि है आंतक की।

अब नहीं विश्वास अपना माँ या बेटे में रहा,
पहचान में आते नहीं है भेड़िये खाल पहने भेद की।

रक्त रंजीत हो रही माँ भारती अपने लहू से,
' आश" तुम कब तक सुनाओगे कथा उपदेश की।

रक्त की प्यासी धरा...