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मैं एक गम हूँ / हरेराम बाजपेयी 'आश'
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तूफानों से डरकर,
भागने कि आदत,
हमारी नहीं है,
उन्हे देखा है, सहा है, सिर पर उठाया है
वही सही है।
मेरी साँसो के ज्वार से
तूफान भी थम सकता है
क्योंकि इन साँसों में,
किसी और का नहीं,
मेरा ही गम रमता है,
गम गहरा होता है,
ऐसा मेरा मन कहता है,
खुशियाँ लहरों कि तरह,
तट से टकराकर लुप्त हो जाती है,
आती जाती हवाएं,
सदियों से यही बताती आयी है,
पर मैं लहर नहीं
गहराई हूँ,
अतः मैं वहीं दिखूँगा,
जहाँ कल था, आज हूँ और कल भी रहूँगा,
गहराई दर गहराई
क्योंकि मैं एक गम हूँ, एक गम हूँ॥