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प्रतीक्षा / पद्मजा बाजपेयी

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बैठी सजनी द्वार, आस का दीप जलाए,
पल-पल रही निहार, राह पर नयन बिछाए,
हर आहट के साथ, सजगता बढ़ती जाए,
स्वयं को रही समेट, मधुरिता घुलती जाए।

मन में उठे हिलोरें और दिल बैठा जाए,
आँखों में प्रेम नीर, नाम को रटती जाए,
ज्यों-ज्यों कटती रात, विवशता बढ़ती जाए,
सन्नाटे के साथ, साँस भी रुकती जाए।

अब आ जाओ मन मोहे, धैर्य अब छूटा जाए,
कुछ घड़ियाँ है शेष, चांदनी न छिप जाए।