भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु महिमा दोहे / पद्मजा बाजपेयी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 14 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा बाजपेयी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गुरु की महिमा बहुत है,
मिल जाए यदि नेक
मंजिल समझो, मिल गई
बिन नौका बिन टेक।
सच्चा गुरु दिखाएगा
हर अच्छी ही राह,
कलुष तुम्हारा घुल गया,
कंचन हो गयी चाह।
ज्ञान बिना खुलते नहीं,
मोहपाश के बन्ध,
गुरु प्रकाश से ही कटे,
हर विपदा के फंद।
प्रभु को पाना है अगर,
गुरु का कर सत्संग,
मूल मंत्र मिल जाएगा,
सद्ग्रंथों के संग।
कठिन तपस्या-साधना,
मोह-मान का त्याग,
सत्कर्मों से ही मिटे,
जन्म-मरण का राग।
जहाँ गुरु वहाँ स्वर्ग है,
पावन है सब पर्व।
सतगुरु की कृपा से
जीवन हो गया धन्य।