नारी प्रगति / पद्मजा बाजपेयी
नारी तुम्हारी प्रगति,
हर क्षेत्र में दिखने लगी,
पिसती चली थी, जो वह
अनेक उद्योगों को चलाती
आज चक्की मालकिन है,
पाठशाला स्कूल जाने को तरसती,
आज शिक्षिका वह स्वयं है।
अन्याय सहना नियति जिसकी
न्यायपीठ पर आसीन है।
गालियाँ मरने को मिलती जिसे,
वही देती जीवनदान है।
मातृत्व का वरदान उसको
रोमांच देता है सदा
हर काल में गरिमा बढ़ाता
मान दिलाता है सदा
मुश्किलें हटती गई
और वह बढ़ती गई।
समय का सिंबल मिला तो
पंख पर उड़ने लगी
वेषभूषा भी है बदली,
अब नहीं घूंघट में छिपती।
शौर्य की यदि बात निकले,
देश की रक्षा भी करती।
लेखिका है, गायिका है,
रूपसी और उर्वशी है,
प्रेयसी है, प्रियतमा भी
राग व अनुराग की वंदनीया है वही,
कौन है जो आज,
उसकी मोहिनी से मुकर जाए?
प्राथमिकता है यही
नारीत्व को उज्ज्वल बनायेँ॰
सृष्टि की इस पवित्र मूरत की
प्रगति चल राहे बुहारे।
सफल हो हर कार्य उसका,
जिस तरफ वह नजर उठाये।