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हमें परजीवी लता नहीं बनना है / रमा द्विवेदी

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हमें परजीवी लता नहीं बनना है
जड़-जमीन हीन,अस्तित्व विहीन,
दी्न-हीनता को तजना है,
हमें परजीवी लता नही बनना है।

न रहो कभी किसी की आश्रिता,
खुद बनकर स्वावलंबी बनो हर्षिता,
हमें खुद अपना संबल बनना है ।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है ॥

न करे हमारा कोई शोषण-कुपोषण,
सावधान रहना है हमको हरदम,
हमें अपनी रक्षा खुद करना है।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥

पराश्रिता का न होता कोई सम्मान,
जो भी चाहे करते हैं उसका अपमान,
ऐसे जीवन को हमें बदलना है।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥

हर खुशी हमारी थाती है,
हम हरदम मुस्काती- गाती हैं,
हर मधुमास हमारा अपना है।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥

यह राह बड़ी है पथरीली,
हरदम पलकें होतीं गीली,
हर कदम पे हमें संभलना है।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥