भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेघ बनकर / पद्मजा बाजपेयी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 15 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा बाजपेयी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तृषित धरती के कणों को, तृप्त कर दो, मेघ बनकर
अग्नि से जलते तनों को, शान्ति दो, तुम प्रेम बनकर,
भटकते राही को, गंतव्य दे दो मीत बनकर।
कालिमा मिट जाएगी, यदि तुम जलोगे, दीप बनकर,
डूबती नौका बचा लो, हाथ का अवलम्ब देकर,
छद्म का पर्दा उठा दो, सत्य की प्रतिमूर्ति बनकर,
टूटते सम्बन्ध जोड़ो, विश्वास की अनुभूति देकर
ज्योति को फिर से जला दो, भावना के अनुरूप बनकर।