भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दंश की आदत छुडा दें शब्द तो कुछ बात हो / विनय कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 2 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दंश की आदत छुडा दें शब्द तो कुछ बात हो।
साँप को सीढ़ी बना दें शब्द तो कुछ बात हो।

सीढ़ियों पर धूप तो सब के लिये होती नहीं
धूप की सीढ़ी बना दें शब्द तो कुछ बात हो।

जो सभी के काम आए पर न मुट्ठी में रहे
हर तरफ ऐसी हवा दें शब्द तो कुछ बात हो।

रास्ते लिपटे हुए हैं रहनुमा के पाँव से
रास्तों को रास्ता दें शब्द तो कुछ बात हो।

ब्रह्म होना छोड़ दें तो दूरियाँ घटने लगें
घास को उँगली थमा दें शब्द तो कुछ बात हो।

सुबह से छत पर पड़ी है, दिन न ढल जाए कहीं
धूप का आलस भगा दें शब्द तो कुछ बात हो।

इन अँकुरती हुई क़लमों को ख़बर है खेत की
हाल मौसम का बता दें शब्द तो कुछ बात हो।