भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द मेरा भै / सुन्दर नौटियाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 17 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुन्दर नौटियाल }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> द मे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
द मेरा भै तु पाड़ आई, सैरू छोड़ि तु पाड़ आई ।
धन हे भैजी तु पाड़ आई, मेरा पाड़ न क्या ली जाई ?

भट्टु कु भुजरांणि न पिसी, सिलोटा मा चटणी न घिसी ।
न घटु ग्यौं गैल कोदु पिसी, मकैं की रोटी न लाई घिची ।
बड़ी न चैंसु न फाणु खाई, द मेरा भै तु पाड़ आई ।
बंटा उठै कबि धारा मा गै ? न ना कब्बि न भै ।
धारों कु छोयों कु पाणि बि पे ? न ना कबि न रे ।
बांजा कि जड़यों कु पाणि नि प्याई, द मेरा भै तु पाड़ आई ।

उखल्यार कबि पिट्ठु न कुटी, अरसों कु स्वाद बि त्वैमा न छुटी ।
गौतु गौत्वाणी अर बिड़ुली रोटी, तिलु की चटणी पिसीं सिलोटी ।
द्यूड़ा न घिंजा न पापड़ी खाई, द मेरा भै तु पाड़ आई ।

धण्यां पालगौं कु मुछ्यार बणै ? नना मैं कैकी सग्वाड़ी नि गै ।
दै तरी गैल खटै बि खै ? भैजी मिनक कखि निमौं नि पै ।
ह्युंद कि रूड़्यों म खटै नि खाई, द मेरा भै तु पाड़ आई ।

सैणा छोड़ि खड़ी धार बि चड़ी ? न ना जर्रतै नि पड़ी ।
इगराळि बाटौं मा खुटी बि रड़ी ? सड़की मा थै मेरी मोटर खड़ी ।
खाणु त क्या त्वैन हवा नि पाई, द मेरा भै तु पाड़ आई ।