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कौन छू गया अंतर को / राहुल शिवाय
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सूना मन मेरा मचल गया
यह कौन छू गया अंतर को
जिसने त्यागे उत्सव सारे
आतप को जिसने मित्र कहा
मौसम-मौसम त्रासद झेला
जो विस्फोटों में नहीं ढहा
वह हृदय आज क्यों पिघल गया
यह कौन छू गया अंतर को
बादल, बरखा, कोयल,जुगनू
फूलों से फूलों सी बातें
फिर प्रेम जगाने जीवन में
हैं जाग रहीं मेरी रातें
मन गिरते-गिरते सँभल गया
यह कौन छू गया अंतर को
व्रत पूरे हुए सुफल देकर
मन-नदिया में जागा कल-कल
पतझर ने वस्त्र किये धारण
उग उठे कल्पना के कोंपल
पल भर में सबकुछ बदल गया
यह कौन छू गया अंतर को