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मौन भी अपराध है / राहुल शिवाय

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सिसकता संघर्ष, उसकी
विवशताएँ!
जान लो तुम
मौन भी अपराध है

सुबह होते ही जगे तुम
काम पर निकले फटाफट
पढ़ रहे अखबार हर दिन
पर समझ पाए न आहट
सत्य से पीछा छुड़ाती
व्ययस्तताएँ!
जान लो तुम
मौन भी अपराध है

आँख पर गॉगल चढ़ाये
धूप को छाया समझते
तुम लगा हेडफोन अक्सर
चीख मन की नहीं सुनते
स्वयं से ही मुँह चुराती
चेतनाएँ!
जान लो तुम
मौन भी अपराध है

सत्य पाँवों के तले है
झूठ पहने ताज़ झूमे
प्रेम भी अपराध है अब
वासना आजाद घूमे
सो रही बदलाव की हर
कल्पनाएँ!
जान लो तुम
मौन भी अपराध है

मौन होकर जब सहा है
बल बढ़ा है शोषकों का
कर रहे हो स्वयं पोषण
यातना के पोषकों का
हार को स्वीकार करती
यातनाएँ!
जान लो तुम
मौन भी अपराध है