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जो लौटना तुम्हें है / राहुल शिवाय

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जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
तुझको याद रहेगी करती ।

कहीं सजल नयनों से मेरे
दृश्य न ये धुँधले हो जाएँ,
आती होगी प्रिया कहीं ये
ख्वाब न सब मेरे खो जाएँ।
सोच इसे आँसू की बूँदें
नयनों में हैं नहीं उतरती।
जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
तुझको याद रहेगी करती।
 
चिर-पीड़ा से व्याकुल यह मन
सूखी आहों के गीले घन,
जीवन के एकाकीपन में
कभी न हो मेरा मन उन्मन।
इस कारण प्रेमिल सुधियाँ नित
अंतर्मन की पीड़ा हरती।
जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
तुझको याद रहेगी करती ।

अमृत-घट की चाह में मैंने
कालकूट का विष है पाया,
प्रेम-दिवस की संध्या में भी
प्रीत-पंथ पर दीप जलाया।
खुद को कहता, प्रेम-कथा में
विरह-अवधि नव रँग है भरती।
जाने कब तक प्रेम-पिपाशा
तुझको याद रहेगी करती।