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झूमते बादल / राहुल शिवाय
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रहे छू आज ये घन-जल
धरा के होंठ के पाटल
मिले हैं आज धरती से
गगन में झूमते बादल
बजे हैं ढोल अम्बर में
घटा घनघोर छाई है
प्रणय की चिठ्ठियाँ लेकर
हवा पुरजोर आई है
जगी है प्रीत की आशा
धड़कता वक्ष धरती का
समय अनुबंध का आया
जगा है भाग्य परती का
धरा थी प्यास से व्याकुल
विरह-ज्वाला धधकती थी
मगर विश्वास कायम था
सदा वह धीर धरती थी
उतर आये गगन से जल
हृदय पर बिजलियाँ कौंधी
जगा उत्साह धरती का
हवा में छा गई सौंधी
बरस कर जल फुहारों ने
धरा को कर दिया शीतल
जगेंगे प्राण बीजों में
हरित होंगे पुन: आँचल