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जमीन / अश्विनी गौड 'लक्की'

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जमीन बटि जुड़्यां
 डाळा ह्वोन चै मनखि
    खूब पौजदन
    खूब रौजदन
    भला सौजदन
जु जमीन बटि जुड़्यां रंदन।

जै माटा बटि
 खाद पाणी
मोळ माटू
खनिज
मिलदू
तैमा खूब
जौड़ा पसार्दन
फैलास ल्यंदन।

हवा पाणी
बरखा बत्वाणी
घामै चटाक
पाळै स्येक्कि
सब स्है जांदन
किलै कि
जमीन बटि
जुड़्यां रंदन।



पर तैं धरती,
 सि क्या द्यंदन?
जैं धरती कु,
 अन्न पाणी खंदन?

जैं धरती
 प्वडगी फाडी
अंगर्यंदन
ठकठका रंदन

जैं धरती मा,
उपजदन,
पनपदन,
ग्वय्या लगै,
खड़ु ह्वौंदा।


अपड़ा
सूखा फूल, पाती, फौंगी,
माटा मा मिलौणौ छोड़ी,
खुराक डाळी जांदन
माटा तैं पौजै जांदन
फैलास ल्यौंदा जौड़ा
दगड़ि
माटा का एक-एक कण तैं
बांधी,
अपणि जमीन मजबूत
करि जांदन,
रड़दि-बगदि बगत
अफु भी बचदन
अर
अपड़ि जमीन भी
बचै जांदन।

किलैकि जमीन बटि जुड़्यां रंदन---

किलैकि जमीन बटि जुड़्यां रंदन।