सुनो कुकुर / अरविन्द भारती
ऐसे
क्या देख रहे हो
आँखे फाड़ फाडकर
चेहरा
मेरा चेहरा देख रहे हो
कुछ नहीं लिखा इस पर
चमड़ी
मेरी चमड़ी देख रहे हो
इस पर भी कुछ नहीं लिखा
कपड़े
मेरे कपड़े देख रहे हो
तुम से अच्छे है
अच्छा अच्छा
मेरे मस्तिष्क की
रेखाएँ पढ़ना चाहते हो
पढ़ो पढ़ो
किसने रोका है
क्यों?
क्या हुआ?
किस सोच में डूबे हो?
तुम्हारे सूंघने की क्षमता तो
गजब है
अच्छा अच्छा
दुविधा में हो
सोच रहे हो
कि दुम हिलाऊ
या भौन्कू
जानता हूँ
तुम पता कर ही लोगे
कि मैं कौन हूँ
फिर भी
तुम्हारी मुश्किल
आसान कर देता हूँ
हाँ
मै वही हूँ
जिस से तुम करते हो
घृणा
मै
अच्छी तरह जानता हूँ
भौंकना प्रवृित्त
काटना धर्म है
तुम्हारा
और
मै यह भी अच्छी तरह
जानता हूँ
तुम्हारी पूंछ
कभी सीधी नहीं होगी
इसलिए
सुनो कुकुर!
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम्हारे भौंकने से
क्योंकि
ज़रूरत पड़ने पर
उठा लेता हूँ मै
डंडा पत्थर।