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तुम्हारे उस पार / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

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हे प्राण,
जो तुम न होते तो
क्या होता तुम्हारे उस पार?
प्रश्न की सुई हर बार यहीं अटकती है,
एक गहन सन्नाटे के साथ।

हे प्राण,
तुम न होते तो गहन सन्नाटा होता
तुम्हारे उस पार।