जिन दिनों तुम शामिल हुए थे मेरे जीवन मे
या यूं कह लो कि मैने शामिल होने दिया था तुम्हे
उन दिनों मेरे आसपास भीड़ रहने लगी थी
दोस्त, संगी, परिचित, रिश्तेदारों से घिरी मुझसे
छूट चला था मेरा एकांत
मेरे पास कोई विषय नहीं था
जिसकी चर्चा हेतु मैं
मेरे एकांत से मिलती
ऐसे कोलाहल भरे समय में तुम मुझे मिले
जिसमे ये पात्रता थी कि
उस भीड़ में से मेरी बाहँ पकड़ कर उठा ले
अकेले अंधेरे में ले जाकर भले छोड़ दे मुझे
पर मिला दे मुझे मेरे बिछड़े, रूठे एकांत से
तो सुनो मेरे पूर्व प्रिय!
तुम्हारे अभिमान का श्रेय तुम्हारी श्रेष्ठता नही
वरन मेरा चुनाव था
मुझे उपयुक्त लगे तुम्हारे बढ़े हांथ
जिसे इतने हौले से थामा गया
कि तुम्हारी तीव्र गति को इनके छूटने का भान तक न हो
तुम मेरे सर्वाधिक प्रिय एकांत से
मिलवाने वाले प्रयोजन हो
मेरे और एकांत के बीच चल रहे मनन के विषय का एक अध्याय मात्र!