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स्वार्थी / राखी सिंह
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तुच्छ थी इतनी वह अ-वस्तु
मांगा जा सकता था दान जिसका
सहर्ष, हांथ पसार
निरपराध मैंने
मांगा तो था क्षमा भी
जुड़े थे दोनों कर मेरे
निर्मल ही होता है कायर
ओ असुरक्षित मानव!
तुमने इतिहास का सबक पढ़ा था
क्लेश भरी मुट्ठी की उंगली तनी थी मेरी दिशा
वितृष्णा ने चीत्कार किया-
जाओ, नहीं कहलाना महान!